विधि का विधान

विधि का विधान

Gujrat
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 विधि का विधान


श्री राम का विवाह और राज्याभिषेक, दोनों शुभ मुहूर्त देख कर किए गए थे; फिर भी न वैवाहिक जीवन सफल हुआ, न ही राज्याभिषेक


और जब मुनि वशिष्ठ से इसका उत्तर मांगा गया, तो उन्होंने साफ कह दिया 


सुनहु भरत भावी प्रबल,

बिलखि कहेहूं मुनिनाथ!

हानि लाभ, जीवन मरण,

यश अपयश विधि हाथ!!


अर्थात - जो विधि ने निर्धारित किया है, वही होकर रहेगा


न राम के जीवन को बदला जा सका, न कृष्ण के!


न ही महादेव शिव जी सती की मृत्यु को टाल सके, जबकि महामृत्युंजय मंत्र उन्हीं का आवाहन करता है!


न गुरु अर्जुन देव जी, और न ही गुरु तेग बहादुर साहब जी, और दश्मेश पिता गुरू गोबिन्द सिंह जी, अपने साथ होने वाले विधि के विधान को टाल सके, जबकि आप सब समर्थ थे!


धन्ना सेठ द्वारा चंदनबाला को बेडियो में बंद होने के बाद भी भगवान महावीर का आहार होना


रामकृष्ण परमहंस भी अपने कैंसर को न टाल सके!


न रावण अपने जीवन को बदल पाया, न ही कंस, जबकि दोनों के पास समस्त शक्तियाँ थी!


एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए। द्वार पर गरुड़ को छोड़ कर श्री हरि खुद शिव से मिलने अंदर चले गए। तब कैलाश की प्राकृतिक शोभा को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी। चिड़िया कुछ इतनी सुंदर थी कि गरुड़ के सारे विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे।


उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की दृष्टि से देखा। गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने साथ यमलोक ले जाएँगे।


गरूड़ को दया आ गई। इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे। उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोश दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया, और खुद वापिस कैलाश पर आ गया। आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी नजर से क्यों देखा था। 


यम देव बोले "गरुड़ जब मैंने उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर एक नाग द्वारा खा ली जाएगी। मैं सोच रहा था कि वो इतनी जल्दी इतनी दूर कैसे जाएगी, पर अब जब वो यहाँ नहीं है तो निश्चित ही वो मर चुकी होगी।"


गरुड़ समझ गये "मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए।"

इस लिए श्री कृष्ण कहते है- करता तू वह है, जो तू चाहता है

परन्तु होता वह है, जो में चाहता हूँ

कर तू वह, जो में चाहता हूँ

फिर होगा वो, जो तू चाहेगा ।


मानव अपने जन्म के साथ ही जीवन, मरण, यश, अपयश, लाभ, हानि, स्वास्थ्य, बीमारी, देह, रंग, परिवार, समाज, देश-स्थान सब पहले से ही निर्धारित करके आता है!


इस लिए सरल रहें, सहज, मन, वचन और कर्म से सद्कर्म में लीन रहें..!

                                 जय जय श्री राधे

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